"मैं एक अकेला और चार दीवार"
  "मैं एक अकेला और चार दीवार"                                             _सुमन   मैं  एक अकेला और चार दीवार ,       कुछ गहरी यादें , उन सपनों के पार ।  मै बैठा किसी कोने में ,       तुम गुमशुदा सी उस सरहद पार ।   तुम चंचल कोमल उस न्यार की भांति ,        मै डमरू भोलेबाबा की सिंगार ।  तुम निराश उस पथिक की तरह        मैं शीतल छांव एक बरगद झाड़ ।   वो गांव की गलियां , खेत की हरियाली ,      मुझे पुकारे मेरे ख्यालों में ।  सायद  ना देख पाउं मुन्ना मुन्नी को      उन बगीचे और खेत खलिहानों में ।   मै फिर भी बड़ा जिद्दी हूं ,      उन पलों से खुशियां पाने को ।  जो पल औझल हो चुके हैं ,       उन्हें जेंहैैं से वापस लाने को ।   मात...